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    • गढी़ , बांसवाड़ा में क्रिकेट प्रतियोगिता का आगाज

      2016-05-20

      बांसवाड़ा २० मई २०१६
      अखिल राजस्थान रावणा राजपूत महासभा के तत्वावधान में गढी़ , बांसवाड़ा में क्रिकेट प्रतियोगिता का आगाज पूर्व आर पी एस सी सदस्य , पूर्व डूंगरपुर पालिका अध्यक्ष , भाजपा के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह सोलंकी के मुख्य आतिथ्य और महासभा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह रावणा के विशिष्ट आतिथ्य में हुआ । लगभग २२ टीमें भाग ले रही हैै ।
      इस अवसर पर सोलंकी ने १२ सितम्बर की महारैली के लिए वीरेन्द्र सिंह रावणा और महासभा के हाथ मजबूत करने की अपील करते हुए कहा , वीरेन्द्र सिंह रावणा वो सख्श है जो किसी से नहीं डरता और न ही अच्छाई की लडा़ई के लिए किसी से समझौता करता है , इनका ईतिहास रहा है राजनीति में चाहा उसको बिगाड़ा और चाहा उसको बनाया । अब इन्होंने समाज के सम्मान का बीड़ा उठाया तो यह भी पूरा होगा ।
      इस अवसर पर रावणा ने समाज के सम्मान हेतु १२ सितम्बर को जयपुर में भारी संख्याबल के साथ उपस्थित होने कि अपील करते हुए खिलाड़ियों से अपील कि , बैटमेन बोल को कर्नल टाॅड समझ कर चोके छक्के मारे , १२ सितम्बर तक मुर्ख लेखकों और प्रकाशकों ने भूल सुधार कर इतिहास नहीं बदला तो , अपनी भूगोल के बिगडने का इन्तजार करें ।

      क्या है मामला :-

      जयपुर में 12 सितम्बर, 2016 की महारैली का प्रमुख मुद्दा होगा ,,,,,

      दरोगा की परिभाषा / शब्दार्थ को इतिहास के पाठ्यक्रम में सही करवाना ।

      अखिल राजस्थान रावणा राजपूत महासभा चलाएगी राज्यस्तरीय जनजागरण अभियान ।

      कर्नल टाॅड वो हरामख़ोर और मक्कार लेखक था , जिसने "राजस्थान का इतहास" नामंक पुस्तक में लिखा,
      दरोगा - राजपूतों की नाजायज़ औलादें है ।

      ये धुर्त उसी नस्ल से था
      जिन्होंने "फूट डालो, राज करो" फार्मूले को
      भारत के इतिहास और संस्कृति में घोल कर मुर्खों पर राज किया ।

      बाद में नकलखोर लेखकों ने भी अपनी अज्ञानता का लोहा मनवाते हुए साबित किया कि उनमें भी अंग्रेजो का लहू दौड़ रहा है ,
      और इस पाठ्यक्रम को आगे बढाया और आज भी ये फूहड़ परिभाषा इस शान से पढ़ाई जा रही है , जैसे यह किसी के भविष्य का अन्तिम छोर हो ।

      जब हमारे पूर्वजों ने टाॅड की तथाकथित टिप्पणी पर ऐतराज कर दरोगा , हजुरी , वजीर , हवलदार , कोठारी , भण्डारी ......आदि पदसूचक जाति नामों को नक्कारते हुए "रावणा " शब्द को 1904 से जाति के रूप में प्रयुक्त करने लगे तो , कुछ विलायती और देशी संक्रमणकारियों ने रावणा पर भी उसी परिभाषा को लादने का नाजायज़ प्रयास किया ।

      इन संकरी नस्लों के लेखकों के लेखन से ऐसा प्रतित होता है कि , इनका प्रमुख खानदानी पेशा तो कुछ ओर ही था , जैसे किसी की पैदाइश पर आरम्भ से अन्त तक नजर रख कर उसको परिभाषित करना और इस पुण्य कार्य में जब ये लगे हुए थे तो , इनकी स्वयम् की नस्लें संक्रमणकाल से गुजर रही होंगी , क्योकि स्वाभाविक है जिस कालक्रम में नस्लें तैयार होती है , उस वक्त यह नस्लों की शोध में व्यस्त थे ।

      यदि कोई विद्वान , नाजायज़ और दरोगा की सम्बन्धता को किसी घटना / दन्तकथा / प्रमाण से साबित कर दे , तो हमें यह परिभाषा मंजूर है ,
      और हम साबित कर दें की यह कुंठित वर्गों की कपोलकल्पित योजना की देन है ,
      तो यह मूर्ख लेखक सार्वजनिक शर्मिन्दगी महशूस कर , अपनी जायजता का प्रमाण दें ।

      हमारा दावा है कि दरोगा एक ईमानदार , कर्तव्यनिष्ट व्यक्ति की पद्वी थी ।

      हम पूछना चाहतें है सभ्यजनों से कुछ सवाल -

      *क्या कोई पद [Post] नाजायज़ कैसे हो सकती है ?
      *यदि इस महत्वपूर्ण पद पर नाजायज़ ही कार्यरत थे तो , आज भी सभी महत्वपूर्ण पदों पर नाजायज़ो का ही एकाधिकार होगा ?
      और यदि ऐसा ही है तो हर खासोआम को नाजायज़ कह कर ही सम्बोधित किया जाए , जिससे नाजायज़ शब्द को ही एक नई पहचान मिल जाए ।

      इस "रावणा राजपूत जनजागरण महारैली" में हम बताएँगे नाजायज़ कौन और कैसे ?

      See www.rawnarajput.com / aboutus

      Daroga : Head of the Department

      [आज का IAS , उस समय का दरोगा
      उस समय का दरोगा , आज का IAS]

      कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र सिंह चावडा ने किया , मान सिंह राठौड़ , सुदर्शन सिंह सोलंकी , चन्द्रवीर सिंह, महेन्द्र सिंह डूंगरपुर , नरेन्द्र सिंह गढी आदी ने भी संबोधित किया ।

      - चन्द्रवीर सिंह

       

       

       

       

       

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